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वाचलेली पाने
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नश्वर
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टैक्सी ने पत्रकार मनीष को शिमला के उस सुनसान घर के सामने उतार दिया था, जिसके बारे में बचपन में उसने कई अजीबोगरीब कहानियां सुनी थीं। हालांकि घर के थोड़ी दूर पर बाज़ार का चहल पहल वाला माहौल था, लेकिन वो घर फिर भी सभी तरह के संपर्कों से कटा कटा सा लगता था।
मनीष उस घर के बाहर खड़ा याद कर रहा था कि किस प्रकार से इस घर में आने के पीछे अखबार के संपादक से उसकी बहस हो गयी थी लेकिन थक हारकर नौकरी बचाने के लिए उसे इस घर में रह रही इकलौती महिला मालिनी का वह साक्षात्कार लेने गया।
मालिनी दीक्षित, जो कि डॉक्टर रवि दीक्षित की धर्म पत्नी थीं। उनसे उनके पति की मौत के बारे में पूछने को साफ मना कर दिया था संपादक ने।
“अजीब पागल है हमारा एडिटर भी, दुनिया यही जानना चाहती है कि डॉक्टर और विख्यात बायोलॉजिस्ट रवि दीक्षित की मृत्यु कैसे हुई और इसने यही सवाल पूछने से मना कर दिया! केवल रवि दीक्षित की उपलब्धियां जानकर क्या करेगी दुनिया? जबकि मौत के बारे में पता चलता तो कुछ मसालेदार खबर बनती।”
लेकिन फिर रवि के जेहन में आया “डॉक्टर रवि की मौत के सदमे के कारण उनकी बीवी ने घर से निकलना ही छोड़ दिया, उनका सारा ज़रूरी सामान एक नौकर ले आता था। उनको इतने सालों से किसी ने घर से निकलते नहीं देखा तो इस तरह का सवाल उनको और दुख देगा, मुझे अपने सवाल केवल डॉक्टर साहब की उपलब्धियों और उनकी शादी की कुछ बातों तक ही सीमित रखने होंगें।”
इन्हीं सब खयालों के साथ मनीष ने उस सुनसान से घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाज़ा ‘चर्र’ की आवाज़ के साथ एक महिला ने धीरे धीरे से खोला। वो महिला कुछ 30 वर्ष से अधिक की नहीं लग रही थी, उसने काला चश्मा लगा रखा था और ज़रूरत से ज़्यादा ही कपड़े पहन रखे थे।
“मैडम को ज़्यादा ही सर्दी लगती है शायद, आज तो धूप भी निकली है अच्छी खासी।” मनीष ये सोचते हुए घर के अंदर घुसा तो उसका शरीर ठंड के झोंके से सिहर गया।
“उफ्फ!” उसके मुंह से यह अनायास ही निकला। जिससे महिला का ध्यान मनीष की तरफ गया, महिला ने धीमी लेकिन मधुर आवाज में उससे कहा- “आप ये बगल में पड़ी शाल उठा लीजिए, घर के अंदर के तापमान में इस तरह आप साक्षात्कार नहीं कर पाएंगे। मैं आपके लिए चाय बना देती हूं।” -कहकर महिला चाय बनाने चली गयी।
मनीष शाल ओढ़कर पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया, घर मे उसने अजीब सी मनहूसियत महसूस की। उस बड़े से सुनसान घर मे उन दो प्राणियों के अलावा कोई नहीं था, उसने अपने चारों तरफ देखा, दीवारों पर बहुत ही कीमती कीमती पेंटिंग्स टंगी हुई थीं लेकिन डॉक्टर रवि या उनकी बीवी की एक भी फोटो उसने नहीं देखा, घर के अंदर की घोर चुप्पी को या तो घड़ी की ‘टिक टिक’ भंग कर रही थी या फिर बाहर से आते जाते वाहनों का शोर।
कुछ ही देर में वो 30 वर्षीय महिला चाय के दो प्याले ट्रे में सजाकर लेकर आ गयी और पहली बार मनीष ने ध्यान दिया कि उस महिला की त्वचा ज़रूरत से कुछ ज्यादा ही सफेद थी और उसने घर के अंदर काला चश्मा भी पहन रखा था जिससे मनीष को कुछ अजीब लग रहा था।
महिला ने धीरे से चाय की ट्रे मनीष के सामने वाली मेज पर रखी और खुद अपना प्याला लेकर सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी।
रवि ने पूछना शुरू किया- “देखिए बुरा मत मानियेगा लेकिन जितना मुझे डॉक्टर साहब के बारे में पता है, उनकी उम्र तो काफी अधिक थी और इसके हिसाब से आपकी उम्र भी कम से कम….”
तभी महिला ने बीच मे टोक दिया- “अरे नहीं नहीं आप गलत समझ रहे हैं, मैं उनकी बेटी सुषमा हूँ।”
ये सुनकर मनीष हल्का सा चौंका, वो सवालिया अंदाज़ में बोला ” बेटी? लेकिन संपादक साहब ने तो मुझे बताया ही नहीं कि डॉक्टर साहब की कोई बेटी भी है?”
महिला ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया- “वो शायद बताना भूल गए होंगे।”
ये सुनकर मनीष भी बनावटी हंसी दिखाता हुआ मुस्कुराया- “हां , हो सकता है। वैसे भी जनाब काफी भुलक्कड़ किस्म के हैं; वैसे घर के अंदर का तापमान सामान्य से कुछ अधिक कम नहीं लगता आपको?”
ये सुनकर सुषमा थोड़ी देर तक चुप रही और फिर अनायास ही बोली- “दरअसल मुझे एक बीमारी है, जिसके कारण मेरी त्वचा गर्मी और धूप के प्रति काफी संवेदनशील है। इसी वजह से घर में न तो धूप आ पाती है और न ही गर्मी। वैसे मां तो कुछ समय के लिए बाहर गयी हुई हैं, तो वो साक्षात्कार देने नहीं आ पायेंगी।”
ये सुनकर मनीष दुखी भी हुआ और थोड़ा हैरान भी, वो बोला- “लेकिन उन्होंने तो कहा था कि डॉक्टर रवि के जीवन के बारे में और अपनी शादी के बारे में वे आज बताएंगी।”
इस पर सुषमा धीर गंभीर आवाज़ में फिर मनीष से बोली- “मां नहीं हैं लेकिन…. उनके और पिताजी के बारे में जितना जानना है, मैं आपको बता दूंगी।” बेहद मासूमियत दिखाते हुए वो बोली।
मनीष ने भी मन ही मन सोचा- “चलो कुछ नहीं से कुछ भला, लेकिन इनकी माताजी के बारे में तो ये प्रचलित है कि वे कभी घर छोड़कर नहीं निकलतीं, खैर छोड़ो मुझे क्या? बस जल्दी से इंटरव्यू खत्म करके निकलूँ यहां से।”
फिर मनीष ने टेप रिकॉर्डर ऑन करके टेबल पर रख दिया और सवाल जवाब का सिलसिला शुरू किया।
मनीष- “तो सुषमा जी, आपके पिता डॉक्टर रवि दीक्षित भले ही अब इस दुनिया मे नहीं हैं लेकिन मेडिकल साइंस में उनके योगदान के कारण कई जानें बची हैं, इसके बारे में आपका क्या कहना है?”
सुषमा- मैं बहुत गर्व महसूस करती हूं कि मेरे पिता ने समाज के लिए इतना कुछ किया।
मनीष- रवि जी के सारे योगदानों के बारे में हम सब जानते ही हैं, लेकिन…क्या आप ये बताना चाहेंगी कि आपकी माताजी और पिताजी पहली बार कैसे मिले?
इस सवाल से सुषमा के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी छा गयी और माथे पर चिंता की लकीरें गहराने लगीं।
मनीष- अगर आप नहीं बताना चाहती तो ठीक है, मैं समझ सकता हूँ कि ये आपका निजी मामला है और…..
सुषमा(बात बीच में काटकर)- मां ने मुझे अपने अतीत से जुड़ी एक एक बात बताई है, मैं बताऊंगी लेकिन ये कहानी थोड़ी लंबी है।
मनीष- मेरे पास वक्त भी बहुत है।
सुषमा ने कहानी सुनानी शुरू की- “ये बात आज से 32 साल पहले की है जब मेरे पिताजी बहुत ही ख्यातिप्राप्त डॉक्टर थे, लेकिन वे सामाजिक रूप से बिल्कुल मिलनसार व्यक्ति नहीं थे। हालांकि अब अगर आप ये कहेंगे कि सारे बुद्धजीवी ऐसे ही होते हैं तो आप गलत हैं क्योंकि मेरे पिता उन सबसे अलग थे। मां यानी कि मालिनी दीक्षित उन दिनों काम की तलाश में शिमला आयी हुईं थीं, अब उनका कोई ठौर ठिकाना तो था नहीं लेकिन किस्मत से पिताजी ने उस वक्त किसी अखबार में पेइंग गेस्ट के लिए इश्तिहार दिया था, जिसको देखकर मां इस घर में चली आयीं। जब उन्होंने दरवाजे को खटखटाया तो दरवाज़ा एक मोटी सी महिला ने खोला।”
उस महिला ने बड़ी ही बेहयाई से मां से पूछा- “क्या है?”
एक पल को तो माँ सहम सी गईं लेकिन फिर उन्होंने पूछा- “क्या आपने पेइंग गेस्ट के लिए इश्तिहार….” इतना सुनते ही उस महिला ने मां को अंदर बुला लिया, मां सामान सहित अंदर आ गईं। महिला ने थोड़ी देर मां को घूरा, मां उस समय खूबसूरत लगती भी थीं और वो मोटी महिला मां के कंधे तक भी नहीं पहुंच पा रही थी, उस महिला ने फिर एकदम रूखी आवाज़ में मां से कहा- “ये बगल वाला कमरा अब तुम्हारा है, किराया समय से दे देना।”
तभी मां की नज़र सीढ़ियों के पास बने ऊपर वाले कमरे की तरफ पड़ी जहां दरवाज़े के नीचे की तरफ से हल्का सफेद धुआं निकल रहा था, उन्होंने उस मोटी महिला से पूछा- “ये ऊपर डॉक्टर रवि जी का कमरा है?”
इसपर महिला बोली- “हां, लेकिन ऊपर गलती से भी मत जाना, डॉक्टर साहब कुछ न कुछ अजीबो गरीब अविष्कार करते रहते हैं, तुम व्यवधान डालोगी तो वो मुझपर नाराज़ होंगें, अब तुम सामान अपने कमरे में शिफ्ट कर सकती हो।”
इतना सुनते ही मां अपना सामान लिए नीचे वाले फ्लोर के कमरे में शिफ्ट हो गईं।
मनीष- माफ कीजियेगा लेकिन क्या आप बता सकती हैं कि वो कमरा कौन सा था? और वो महिला कौन थी जो पहले से इस घर मे थी?
सुषमा- जी बिल्कुल, ये जो आप सामने वाला कमरा देख रहे हैं, यही था मां का कमरा और उस मोटी महिला का नाम पल्लवी था जो किसी ज़माने में यहां की केयरटेकर थी, कुछ समय पहले उसकी रहस्यमयी हालातों में मौत हो गयी। पुलिस भी पता नहीं लगा पाई की कैसे कत्ल हुआ।
मनीष- ओह सुनकर बहुत बुरा लगा उनके बारे में। अच्छा, अब आप आगे की कहानी सुना सकती हैं।
सुषमा- जी। मेरी माँ मुरादाबाद से यहां तक अकेले सफर तय करके आयी थी, अपना सब कुछ छोड़कर….यहां तक कि अपने पूर्व प्रेमी अमन को भी। तो जैसे ही अमन को पता चला कि मां यहां शिमला डॉक्टर रवि के घर आयी हुई हैं, तो वो भी पीछा करता हुआ यहां तक आ गया। वो रात का समय था और मां अपने कमरे में आराम कर रही थीं कि तभी अमन पाइप के सहारे चढ़कर मां के कमरे में घुस आया, उसने शायद खिड़की से मां को देख लिया होगा। मां ने उससे कुछ देर बहस की लेकिन जब बात नहीं जमी तो अमन हाथापाई पर उतर आया। जिसकी वजह से मां घबराकर अपने कमरे से निकलकर ऊपर वाले कमरे की तरफ भागीं, पीछे अमन भी भागा और उसने मां को पकड़ लिया लेकिन तभी ऊपर वाले कमरे का दरवाजा खुला और एक हाथ ने अमन को मां से अलग खींच लिया। दोनों ने देखा तो सामने खड़े थे पिताजी डॉक्टर रवि दीक्षित हल्की सी सफेद त्वचा वाले, हट्टे कट्टे नौजवान, उनके चेहरे पर एक अलग ही सभ्यता नज़र आती थी।
उन्होंने गंभीर लेकिन शांत आवाज़ में अमन से कहा- “चुपचाप यहां से निकल जाओ और किसी को चोट नहीं पहुंचेगी।”
अमन उनकी चेतावनी को अनसुना करते हुए मां की तरफ बढ़ा लेकिन पिताजी के ज़ोरदार मुक्के ने उसे सीढ़ियों से नीचे गिरा दिया, उसके बाद वो वापिस उठा ज़रूर लेकिन घर से बाहर भागने के लिए।
मां ने यह देखकर राहत की सांस ली और उन्होंने पहली बार डॉक्टर रवि को देखा, उनके व्यक्तित्व ने मां का मन मोह लिया था।
पिताजी बहुत ही सभ्य आवाज़ में मां से बोले- “अब आपको बिल्कुल भी फिक्र करने की ज़रूरत नहीं, वो वापस नहीं आएगा और अगर आ भी गया तो उसके लिए हम तैयार रहेंगे।
“वैसे मैं क्षमा चाहता हूं कि मैं आपसे मिल नहीं पाया, मैं डॉक्टर रवि दीक्षित। मुझे पल्लवी में बताया था कि आप आ गयी हैं लेकिन मैं अपने अविष्कारों में इतना बिजी था कि….”
मां मुस्कुराकर बोली- “…कि आपको पूरे दिन में बाहर आने का मौका नहीं मिला?”
डॉक्टर रवि मुस्कुराए- “दरअसल बात ये है मालिनी कि मेरी त्वचा धूप और गर्मी के प्रति काफी संवेदनशील है इसीलिए दिन के वक्त मेरा ज़्यादा देर तक बाहर रहना ठीक नहीं है।”
लेकिन मां ने बात बीच मे काट दी।
मालिनी- “कोई बात नहीं डॉक्टर साहब, मैं समझती हूँ कि आपको समय नहीं मिला होगा, इसकी भरपाई एक चाय से हो सकती है।”
पिताजी मुस्कुराकर बोले- “हाँ… हाँ… बिल्कुल, भरपाई तो करनी ही पड़ेगी।”
उस दिन मां ने डॉक्टर रवि और अपने लिए चाय बनाई लेकिन चाय खत्म होने के बाद भी उनकी चर्चा खत्म नहीं हुई, कुछ दो घंटे वो बैठकर बात करते रहे लेकिन तभी पिताजी की नज़र घड़ी पर गयी और वो बोले “बहुत देर हो गयी है मालिनी जी, अब हमको अपने अपने कमरे में वापस चलना चाहिए।”
फिर वे दोनों अपने अपने कमरे में चले गए लेकिन मां के दिमाग से उनका ख्याल नहीं गया। मां सोने चली गईं लेकिन रात के लगभग तीन बजे उनकी आंख खुल गयी, ऊपर के फ्लोर पर ड्रिल चलने जैसी आवाज़ आ रही थी,मां को बड़ा अजीब लगा तो वो ऊपर वाले कमरे की तरफ बढ़ीं। डॉक्टर रवि दीक्षित ने दरवाज़ा खुला रखा था, जब मां ने दरवाज़ा खोला तो तापमान में एक भारी गिरावट महसूस की लेकिन जब कमरे के अंदर उनकी नज़र पड़ी तो उनकी रूह तक कांप गयी।”
इतना बताकर सुषमा चुप हो गयी।
मनीष- फिर….फिर क्या हुआ? क्या देखा उन्होंने? और आपकी ये त्वचा वाली बीमारी क्या आपके पिताजी के कारण आपको मिली है?
सुषमा- मैं ज़रूर बताऊंगी लेकिन पहले अपना टेप रिकॉर्डर बन्द कीजिये, अगर आप जानना ही चाहते हैं तो मैं ये बात ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ जाकर बताऊंगी।
अब मनीष और ज़्यादा बेचैनी हुई। उत्सुकतावस आगे की कहानी जानने के लिए उसने मेज पर सामने रखा टेपरिकॉर्डर बन्द कर दिया।
मनीष- अब बताइए, क्या बात हुई थी?
सुषमा(ठंडी आह भरकर)- मां ने देखा कि अमन एक बिस्तर से रस्सियों द्वारा बंधा हुआ था, उसका पेट नीचे की तरफ था और पीठ पर डॉक्टर रवि ड्रिल चला रहे थे। साथ मे पल्लवी भी मौजूद थी। माँ ये भयावह दृश्य देखकर बहुत घबरा गई और चीख पड़ी जिससे पल्लवी और रवि का ध्यान उसकी तरफ चला गया। मां आनन फानन में बहुत जल्दी उस कमरे से निकली लेकिन सीढ़ियों से उनका पैर फिसल गया और वो ज़मीन पर गिरकर बेहोशी की गर्त में चली गईं, जब उनको होश आया तो वे डॉक्टर रवि के कमरे में थीं और रवि उनके पास खड़े थे।
वो चीख मारकर उठ खड़ी हुई- “तुमने…. त्….त…तुमने… उसे मार दिया!”
पिताजी अपनी गंभीर और शांत आवाज़ में बोले- “शांत हो जाओ मालिनी, मैंने ये सब तुम्हारे लिए ही किया है।”
इसपर मां बोलीं- “म..मेरे लिए? ये क्या कह रहे हैं आप?”
पिताजी ने उनको पहले बैठाया और फिर बताना शुरू किया- “अब जो मैं तुमको बताने जा रहा हूँ मालिनी वो तुमको बहुत अजीब लगेगा लेकिन मुझे लगता है कि अपना ये राज़ मैं तुमको बता सकता हूँ।”
तभी पल्लवी कमरे में आ गयी- “रुकिए रवि जी, मुझे लगता है कि इसको कुछ भी बताना ठीक नहीं रहेगा। हमारे लिए समस्या बढ़ जाएगी।”
रवि जी उसकी तरफ मुड़े और अपने क्रोध को दबाते हुए बोले- “यहां से ….बाहर जाओ।”
पल्लवी को दूसरी बार बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ी, वो खुद कमरे से बाहर चली गयी।
पिताजी फिर मां की तरफ मुड़े और पूछा- “तुम्हें क्या लगता है मालिनी कि मेरी उम्र क्या होगी?”
मां घबराई सी आवाज़ में बोलीं- “पता नहीं, शायद ….शायद मेरे ही हमउम्र हैं आप।”
इस जवाब पर पिताजी मुस्कुराए और बोले- “तो तुम्हें ये जानकर झटका लगने वाला है कि मेरी उम्र 150 साल है।”
मां ने आंखें फाड़कर डॉक्टर रवि को देखा, जो कहीं से भी 30 से ऊपर के नहीं लग रहे थे, बस उनकी त्वचा थोड़ी सफेद थी।
पिताजी ने आगे बताना शुरू किया- “मैं अपने कॉलेज के दिनों से पढ़ाई में बहुत तेज़ था, मुझे मानव शरीर की संरचना जानने में बहुत दिलचस्पी थी। दिन दिन भर पढ़ता देखकर मेरे दोस्त मुझे पागल कहते थे। एक दिन मेरे पिता और माता की मृत्यु एक कार एक्सीडेंट में हो गयी, तब मैंने नई नई प्रैक्टिस शुरू ही की थी। उस दिन में एक आंसू नहीं रोया बल्कि मेरे अंदर एक बदलाव आया, एक उत्सुकता बढ़ी मानव शरीर को और ज़्यादा जानने की….ज़िंदगी और मौत को जानने की और तब मुझे पता चला इस प्रयोग के बारे में।”
अब तक मां को भी पिताजी की बातों में दिलचस्पी होने लगी थी- “कैसा प्रयोग?”
पिताजी ने गहरी सांस छोड़ते हुए बताया- “हम सबकी रीढ़ की हड्डी में एक spinal fluid(मेरुद्रव) होता है, अगर हम एक ठंडे वातावरण में किसी अन्य व्यक्ति का ताजा spinal fluid अपने शरीर में एक निश्चित मात्रा में इंजेक्ट करें तो हम…खुद को “अमर” बना सकते हैं, नश्वरता को काबू कर सकते हैं लेकिन हर चीज़ की एक कीमत होती है इसकी भी है।
“शुरुआत में मैंने अस्पताल के मुर्दों से spinal fluid चोरी करना शुरू किया, वो भी ताज़ा मुर्दों से क्योंकि मौत के 2 घंटे बाद spinal fluid बेकार हो जाता है और ये प्रयोग मेरे ऊपर सफल भी रहा लेकिन इस अविष्कार के कुछ…. साइड इफेक्ट्स भी रहे जैसे अगर मैं धूप और गर्मी के संपर्क में कुछ देर रहूं तो त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं और अगर ज़्यादा देर तक रहूं तो शायद…..मर भी सकता हूँ। पर ये मेरे जीवन में पहली बार था कि मैंने किसी ज़िंदा व्यक्ति को बांधकर उसका spinal fluid लिया हो….और ये मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए किया ताकि ये तुमको दोबारा परेशान न कर सके।”
मां अब तक मंत्रमुग्ध होकर पिताजी की सारी बातें सुन रही थी, तभी पिताजी की आवाज़ से उनकी तंद्रा भंग हुई- “क्या सोच रही हो मालिनी? तुम मुझे कानून के हवाले कर सकती हो लेकिन मुझे शक है कि धूप में बाहर निकलने पर मैं ज़्यादा देर तक जीवित बचूंगा।”
इस पर मां बोलीं- “उसकी कोई ज़रूरत नहीं है, मैं समझती हूं कि आपने ऐसा क्यों किया लेकिन अब हम अमन की लाश का क्या करें?”
पिताजी मुस्कुराकर बोले- “इसकी चिंता तुम मत करो, मैं उसकी लाश का इंतज़ाम कर दूंगा।”
उस घटना के बाद सब सामान्य हो गया, जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था। यही वो समय था जब मां की किसी बेकरी के स्टोर में नौकरी भी लग गयी थी, वो सारे दिन काम करतीं और शाम को पिताजी के साथ अपने सारे अनुभवों को साझा करतीं। उनकी नजदीकियां दिन पर दिन बढ़ती ही चली जा रही थीं और एक दिन ऐसा भी आया जब पिताजी ने मां को शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया। उस दिन मां एकदम हक्कीबक्की रह गयी, जब उन्होंने पिताजी के मुंह से सुना- “मैं तुमसे प्यार करता हूँ मालिनी और शादी करना चाहता हूं।”
मां के मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे- “वो, मैं…”
तभी पिताजी उनकी बात काटकर बोले- “मैं समझ सकता हूँ मालिनी की कितना मुश्किल है, एक ऐसे व्यक्ति के साथ रहना जो सालों पुरानी ज़िंदा लाश से अधिक कुछ भी नहीं, बात ये है कि जब से मैंने होश संभाला है, तब से जीव विज्ञान की में नई नई खोजों और नई नई संभावनाओं की खोज में इस कदर रमा हुआ था कि अपनी व्यक्तिगत ज़िंदगी के लिए समय ही नहीं मिला, ऊपर से जब माता पिता की मौत हुई तो मैं पूरी तरह से टूट गया था और मानसिक रूप से विक्षिप्त होने के कगार पर पहुंच गया था। अब मैं नश्वर नहीं रहा, मैं एक चलता फिरता सांस लेता ज़िंदा प्रेत बनकर रह गया हूँ तो अगर तुम मुझे मना करोगी तो मैं समझ सकता हूँ कि तुम ऐसा क्यों करोगी, कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है।”
इस पर मां पहले तो हल्का सा मुस्कुराई और कहा- “आप कहते हैं कि आप ज़िंदा प्रेत हैं लेकिन इस ज़िंदा प्रेत ने मेरा मन बहुत पहले ही मोह लिया था। जिस तरह से इतने दिनों तक आपने मुझसे बातें की, मुझे समझा, मुझे नहीं लगता कि ऐसा व्यक्ति कहीं भी मिल पायेगा। मैं भी आपसे शादी के लिए ही पूछना चाहती थी लेकिन कभी समझ नहीं आया कि कैसे आपसे बात करूँ इस बारे में।”
वो पल शायद उन दोनों के जीवन का सबसे खूबसूरत और यादगार पल था, जैसा कि उन्होंने मुझे बताया। बाद में जब उनकी शादी हुई तो वो बस एक फॉर्मेलिटी के तौर पर हो गयी जिसमें कोर्ट में कुछ ही समय में निपटा दिया गया क्योंकि पिताजी अपनी “विशिष्ट” स्थिति के कारण केवल रात में ही बाहर निकल सकते थे। फिर दोनों हंसी खुशी रहने लगे।
ये कहानी सुनाते सुनाते सुषमा भी कहीं खो सी गयी थी लेकिन मनीष की एक आवाज़ से उसका ध्यान भंग हो गया।
मनीष- अगर आप इतना कुछ ” ऑफ द रिकॉर्ड” जाकर बता ही रही हैं तो एक बात और बता दीजिए….आखिर डॉक्टर रवि दीक्षित की मृत्यु कैसे हुई?
सुषमा- आपको जितना जानना था, आप जान चुके हैं। अब आप यहां से जा सकते हैं।
मनीष- प्लीज, देखिए ये बात सिर्फ आपके और मेरे बीच मे ही रहेगी।
सुषमा- मैंने कहा न….अब आप जा सकते हैं।
मनीष- तो फिर ठीक है, डॉक्टर रवि का राज़ दुनिया के सामने आने से कोई नहीं रोक पायेगा क्योंकि मैंने टेप रिकॉर्डर बन्द करने का सिर्फ नाटक किया था, बन्द नहीं किया था।
सुषमा(हैरानी से)- क्या? तुम पत्रकारों का तो भरोसा कभी करना ही नहीं चाहिए! पर क्या तुम ये गारंटी दे सकते हो कि अगर मैं तुमको उनकी मौत के बारे में बता दूं तो डॉक्टर रवि का है राज़ तुम दुनिया को नहीं बताओगे?
मनीष- इतना भरोसा रखिये मैडम।
सुषमा- भरोसा करके ही तो पछता रही हूँ। खैर, फिर माता पिता की शादी हो गयी और जल्द ही मां को ये पता चला कि वे गर्भवती हैं। घर में खुशी की लहर दौड़ गयी लेकिन इस दौरान एक अजीब बात भी हुई…पल्लवी शादी से पहले गायब हो गयी और काफी समय तक लौट कर नहीं आयी। फिर दोनों लोगों ने एक और नौकर रख लिया जिसका नाम था राजू, राजू बड़ा ही अच्छा व्यक्ति है।
मनीष- वो अभी भी है?
सुषमा- हां, अभी बाहर गया है, आता ही होगा। खैर, उनकी ज़िंदगी हंसी खुशी चल रही थी कि अचानक से पल्लवी एक रात बेहद क्रोध में घर मे घुस आई। तब मां पिताजी नीचे वाले बरामदे में ही बैठे थे, जब उन्होंने देखा कि पल्लवी के हाथ में बंदूक है तो वे बेहद घबरा गए।
पिताजी एकदम सकपका गए थे- “पल्लवी ये क्या पागलपन है? बंदूक लेकर क्या कर रही हो तुम यहां?”
पल्लवी तो जैसे पागल हो चुकी थी, वो चिल्ला उठी- “तू चुप रह रवि दीक्षित! इतने दिन तक तेरा साथ दिया मैंने, ताज़े मुर्दों का spinal fluid चुकराकर तेरी अनश्वरता, अमरता को बनाये रखने में मदद की और बदले में तूने मुझसे इतना बड़ा धोखा किया? शादी किसी और से कर ली? अब तुझे इसकी भरपाई करनी होगी, मैं इस लड़की को मार दूंगी। तब तू फिर से अकेला हो जाएगा।” कहकर पल्लवी ने मां की तरफ बंदूक तान दी।
पिताजी ने पल्लवी को समझाने का प्रयास किया- “देखो मुझे तुमसे कोई लगाव नहीं था, पल्लवी। अब हमें और कोई समस्या नहीं चाहिए बंदूक नीचे करो।” लेकिन पल्लवी के कान पर तो जैसे उनकी आवाज़ पड़ ही नहीं रही थी, उसने गोली चला दी।
लेकिन वो गोली मां तक पहुंची ही नहीं, उससे पहले ही पिताजी ने उस गोली को अपने सीने पर झेल लिया। पल्लवी और मां दोनों ही तुरंत पिताजी के पास दौड़ पड़ीं, पिताजी ज़मीन पर धराशायी अपनी बची खुची सांसें गिन रहे थे।
मां के आंसू रुक ही नहीं रहे थे, वो बड़ी मुश्किल से बोल पायीं- “ये..ये क्या किया आपने?”
जवाब में पिताजी ने अपनी बची खुची आखिरी साँसों की ताकत से कहा- “मैं अपनी ज़िंदगी बहुत जी चुका। बल्कि जितनी जीनी चाहिए थी उससे ज़्यादा ही जी चुका हूं लेकिन भगवान ने मेरी उम्र शायद तुमको दे दी है।”
मां के समझ मे नहीं आया कि ये उन्होंने क्यों कहा तो उन्होंने अपने आंसुओं को काबू में करके फिर पूछा- “आ..आप ऐसा क्यों कहा रहे हैं?”
पिताजी हल्का सा मुस्कुराए और उत्तर दिया- “क्योंकि…क्योंकि तुमने मुझसे शारीरिक संबंध स्थापित किया, जिससे मेरे शरीर का अमरता और मेरे शरीर का श्राप दोनों तुम्हारे शरीर मे जा चुके हैं। मैंने कुछ समय पहले तुम्हारा ब्लड टेस्ट किया था, उसकी रिपोर्ट से मुझे पता चला, सोचा था कि जल्द ही तुमको बात दूंगा लेकिन……” इतना कहते ही पिताजी इस दुनिया से चले गए।
अब तक मां को समझ मे भी नहीं आया था कि वो क्या करे , तब तक क्रोधित पल्लवी ने फिर से बंदूक उठाकर मां पर तान दी और चिल्लाकर बोली- “तेरी वजह से मैंने अपना प्यार भी खोया साथ ही अमर होने का इकलौता मौका भी खो दिया, जब मैं नश्वर रह गयी तो तू भी अमर जीवन नहीं जियेगी।”
मां ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, अपने पेट में पल रहे बच्चे की दुहाई भी दी लेकिन पल्लवी नहीं मानी पर सही मौके पर राजू पीछे से फावड़ा लेकर आ गया और पल्लवी के सर पर जोरदार ढंग से प्रहार किया। पल्लवी ने उसी वक्त दम तोड़ दिया, फिर राजू उसकी लाश को सड़क के किनारे छोड़ आया ताकि ये एक एक्सीडेंट लगे।
सुषमा के इस भयानक विवरण के बाद पूरे घर मे सन्नाटा छा गया, मनीष को समझ में ही नहीं आया कि वो आखिर क्या बोले।
मनीष- त..तुमने ये बात पुलिस से छिपाई रखी?
सुषमा- पुलिस को ये बताती तो माँ पिताजी से जुड़ी हर एक बात बतानी पड़ती, जो कि मैं…
मनीष(बात बीच मे काटकर)- बकवास बन्द करो, मुझे क्या तुमने बेवकूफ समझ रखा है। तुम्हें क्या लगता है कि इतनी देर में मुझे पता नहीं चल गया होगा कि तुम सुषमा नहीं बल्कि डॉक्टर रवि की बीवी “मालिनी दीक्षित” हो जिसे डॉक्टर से अमरता प्राप्त हो चुकी है। जिस प्रकार से तुमने अपनी कहानी बताई उसी से मुझे शक हो रहा था कि तुम मालिनी हो लेकिन यकीन तो तब हुआ जब मैंने गौर किया कि तुमने इतने सारे ढीले कपड़े क्यों पहने हैं…..क्योंकि तुम आज तक गर्भवती हो, तुम्हें अमरता तो मिल गयी लेकिन किसी सुषमा का जन्म आज तक हुआ ही नहीं, इतने वर्षों से तुम्हारा बच्चा तुम्हारे पेट मे ही है।
मालिनी में चेहरे पर अपना राज़ खुलने की कोई चिंता दिखाई नहीं दी। वो तो उल्टा मुस्कुरा रही थी।
मनीष- बहुत हंसी आ रही है? अभी जब दुनिया को तुम्हारी सच्चाई पता चलेगी तब देखता हूँ कि ……
मनीष को अचानक बोलते बोलते चक्कर आने लगे, वो लड़खड़ाने लगा।
मनीष(लड़खड़ाती ज़ुबान से)- च..चाय में क्या मिलाया था तूने!
मालिनी(मुस्कुराते हुए)- बेहोशी की दवा।
थोड़ी ही देर में मनीष बेहोश हो गया, ठीक उसी वक्त नौकर राजू भी घर के अंदर आ गया।
राजू- एक नया शिकार मेमसाहब?
मालिनी- हम्म! इसको ऊपर वाले कमरे में ले जाओ, वहीं में इसका spinal fluid निकालकर अपने शरीर मे इंजेक्ट कर लूंगी, मेरे रवि ने मुझे अमरता का जो वरदान दिया है उसे मैं व्यर्थ नहीं जाने दे सकती।
राजू मनीष के बेहोश शरीर को उठाकर ऊपर की तरफ ले गया जहां आज भी डॉक्टर रवि का कमरा उसी तरह से बना हुआ था। मालिनी अपने फूले हुए पेट पर हाथ फेरती हुई बोली ” सुषमा मेरी बच्ची, तुम्हारा जन्म नहीं हुआ तो क्या हुआ, तुम्हें ज़िंदा रखने की ज़िम्मेदारी मेरी है। अब मेरे साथ साथ तुम भी जियोगी…..शायद उस दुनिया के अंत तक।”